भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहकारी खेती में ही सब के भलाई हवै / कोदूराम दलित
Kavita Kosh से
सहकारी खेती में ही सब के भलाई हवै,
अब हम सहकारिता-मां खेती करबो ।
लांघन-भूखन नीरहन देन कंहूच-ला,
अन्न उपजाके बीता भर पेट भरबो ।।
भजब अकन पेड़-पउधा लगाबो हम,
पेड़-कटई के पाप करे बर उरबो ।
देभा-ला बनाओ मिल-जुल के सुग्धर हम,
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो ।।