भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहचर / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
सहचर
जब चलेंगे गाँव के
उस पार
दो पग
ठूँठ को घेरी दिशाएँ
झोलियों में कैद होकर
साथ देने चल पड़ेंगी
और सारे गिद्ध
डैनों
और पैने नाखुनों से
मील लंबे रास्तों तक
नोचने पीछे चलेंगे
हर नगर में, हर डगर में
हिंस्र पंजों के विकट
आतंक ताने
गाँव के सहचर, सखा बन
साथ होंगे।