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सहज-सहज कर दो; / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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सहज-सहज कर दो;
सकलश रस भर दो।
ठग ठगकर मन को
लूट गये धन को,
ऐसा असमंजस, धिक
जीवन-यौवन को;
निर्भय हूँ, वर दो।
जगज्जाल छाया,
माया ही माया,
सूझता नहीं है पथ
अन्धकार आया;
तिमिर-भेद शर दो।