Last modified on 19 अक्टूबर 2009, at 20:03

सहज-सहज कर दो; / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

सहज-सहज कर दो;
सकलश रस भर दो।

ठग ठगकर मन को
लूट गये धन को,
ऐसा असमंजस, धिक
जीवन-यौवन को;
निर्भय हूँ, वर दो।

जगज्जाल छाया,
माया ही माया,
सूझता नहीं है पथ
अन्धकार आया;
तिमिर-भेद शर दो।