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सहज सुबासयुत देह की दुगुनि दुति / मतिराम

सहज सुबासयुत देह की दुगुनि दुति ,
दामिनि दमक दीप केसरि कनक ते ।
मतिराम सुकवि सुमुखि सुकुमारि अँग ,
सोहत सिँगार चारु जोबन बनक ते ।
सोइबे को सेज चली प्रान पति प्यारे पास ,
जगत जुन्हाई ज्योति हँसनि तनक ते ।
चढ़त अटारे गुरु लोगन की लाज प्यारी ,
रसना दसन दाबै रसना झनक ते ॥


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।