सहन किया सब कुछ मैंने / प्रीति समकित सुराना
सहन किया सब कुछ मैंने
बातें जब तक सहन हुई...
रोक नहीं पाई आँसू
पीड़ा इतनी गहन हुई,
कभी न तोड़ी सीमाएँ
हर नाते को मान दिया,
बस अपनापन पाने को
सबको अपना जान लिया,
भाव नही समझे अपने
व्यथा कथा का कहन हुई,
रोक नहीं पाई आँसू
पीड़ा इतनी गहन हुई,
सहन किया सब...
अपने ही जब गैर हुए
सपने मेरे बिखर गए,
उलझन थोड़ी और बढ़ी
नाते मन से उतर गए,
छोटी छोटी बातों में
सारी खुशियाँ दहन हुई,
रोक नहीं पाई आँसू
पीड़ा इतनी गहन हुई,
सहन किया सब...
पनपा शक का कीट जहाँ
प्रेम खिला कब उस आँगन,
आज हुआ सूना सूना
खिला खिला था जो उपवन,
गलतफहमियाँ भी ढोई
जितनी जब तक वहन हुई,
रोक नहीं पाई आँसू
पीड़ा इतनी गहन हुई,
सहन किया सब...
रोक नहीं पाई आँसू
पीड़ा इतनी गहन हुई,
सहन किया सब कुछ मैंने
बातें जब तक सहन हुई...