भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सहरन ते जुड़िगा है / भारतेन्दु मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहरन ते जुड़िगा है
हमरे गाँव क्यार गलियारा
नयी रोसनी आय रही
सब गावैं लिहे चिकारा।

पहिले जमीदार के चंगुल-
मा सब रहैं फँसे
अब छोटभैया ठग नेता
सब गाँवैम आय बसे
जाल रचैं स्वारथ की खातिर
इनते बिधिनौ हारा।

मउके पर कोरे कगदन पर
अँगुठा लगवावैं
सालुइ भीतर ई घर की
नीलामी करवावैं
भूखे मरब नीक है
इनते मिलै अगर छुटकारा।

जब लौ तथा रही तब लौ
ई मददगार रहिहैं
चारिउ पहर हाजिरी तुमरे घरहेम दइ जइहैं
बिरछ लगइहैं दिन मा
अउरु राति भर चलिहैं आरा।