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सहराओं में फूल उगाने की ख़्वाहिश है / सुरेश चन्द्र शौक़
Kavita Kosh से
सहराओं में फूल उगाने की ख़्वाहिश है
कैसी अजब यह इक दीवाने की ख़्वाहिश है
ग़म के खज़ाने भरे पड़े हैं लेकिन फिर भी
यह दौलत कुछ और कमाने की ख़्वाहिश है
बुग़्ज़, तअस्सुब, ज़ुल्म, हिक़ारत, मक्र, अदावत
ऐसी हर दीवार गिराने की ख़्वाहिश है
इस दुनिया से दूर उफ़ुक़ के पास अलग ही
अपना इक संसार बसाने की ख़्वाहिश है
उसके दिल की हालत यारो किसने देखी
जिसके दिल में जान से जाने की ख़्वाहिश है
तूफ़ानों का खेल तमाशा देख चुके हम
‘शौक़’ अब कश्ती पार लगाने की ख़्वाहिश है
बुग़्ज़=द्वेष ;तअस्सुब: धार्मिक कट्टरपन; हिक़ारत: घृणा; मक्र=छल; अदावत=शत्रुता; उफ़ुक़:क्षितिज