भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहल इस तरह ज़िन्दगी कर दे / अमित
Kavita Kosh से
सहल इस तरह ज़िन्दगी कर दे
मुझपे एहसाने-बेख़ुदी कर दे
आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे
हिज़्र की आग से तो बेहतर है
ये मुलाक़ात आख़िरी कर दे
ऐ नुजूमी जरा सितारों पर
हो सके थोड़ी रोशनी कर दे
दास्ताने-सफ़र 'अमित' शायद
उनकी आँखे भी शबनमी कर दे