भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सहायिका / सुलोचना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं कह पाई शुक्रिया मैं उस माली से
लगा गया जो पेड़
गुलाबी चम्पा का हमारी बगिया में

कहाँ दे पाई शाबाशी मैं उस चुनचुन चिड़िया को
दिखा गई जो नाच
बस कुछ दाने चुगकर बालकनी में

पर कह देती हूँ धन्यवाद हर बार सहायिका से
जो करती है काम पैसे लेकर
बड़े ही अनमने तरीके से घर में

सहायिका का होना तय करता है
चम्पा का गुलाबी होना मेरे लिए
और यह जानना कि नाच सकती है चुनचुन चिड़िया

कितना ज़रूरी है सहायिका का होना जीवन में