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सहारा अभी तक मुझे मिल न पाया / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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सहारा अभी तक मुझे मिल न पाया॥
नहीं कर रहा स्वर्ग की कामना मैं
नहीं कर रहा मुक्ति की याचना मैं;
तुम्हें खोजने की मिले राह मुझको
लगे प्राण मेरे इसी साधना में।
उठाऊँ किधर पैर अपने, इसी का
इशारा अभी तक मुझे मिल न पाया॥1॥
नहीं जानता प्राण किसने हँसाये
नहीं जानता प्राण किसने रुलाये
मगर मुसकराकर नयन अश्रु भर-भर
लिखे गीत मैंने जगत को सुनाये।
रहा दुख बिछुड़ जो गया अश्रु मेरा
दुबारा अभी तक मुझे मिल न पाया॥2॥
स्वयं बन सुमन शूल में मैं खिला हूँ
स्वयं दीप बन आँधियों में जला हूँ;
न पतवार है हाथ में किन्तु फिर भी
स्वयं नाव लेकर अकेला चला हूँ।
बहा जा रहा आज मँझधार में मैं
किनारा अभी तक मुझे मिल न पाया॥3॥