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सही नाम लेने में / नईम

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सही नाम लेने में चीज़ों के हम डरते,
मरती नानी,
निपट दुचित्ते व्यवहारों में
कोई नहीं हमारा सानी।

मँहगाई की मार, जिसे कहते मौसम की,
कुर्की-डिक्री आती हैं जैसे हों यम की;
भूख-प्यास के दुक्ख परीक्षाएँ लेते प्रभु,
शहंशाह तो ठीक, कनीजों से क्यों डरते-
हम बलिदानी?

कजेऱ् को अनुदान, ब्याज को कहें मुनाफा।
ये खि़जाब के बूते कम कर रहे बुढ़ापा;
पता नहीं, आँखों का काजल चुरा रहे ये-
चेहरों पर चेहरे चस्पा, बासी मुस्कानें,
उतरे पानी।

मना रहे हम मरे हुए रिश्तों का सूतक,
लिखना जीना होता, पर करते ये कौतुक;
कविताओं में पितर पूज्य ये विरल हो गए,
हर आसान विषय को मुश्किल
करते हैं ये अवढरदानी।
सही नाम लेने में चीजों के हम डरते, मरती-नानी।