भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सही समय / गोविन्द माथुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सही समय ज्ञात करना
आसान नहीं है
अक्सर हमें सही समय का
पता नहीं होता

दीवारों पर टँगी या
कलाई पर बँधी घड़ियाँ
या तो समय से आगे होती है
या फिर समय से पीछे

शहर के घँटाघर की घड़ियाँ
बँद पड़ी रहती है कई दिनों तक
पुलिस लाइन में बजने वाले घँटों की
आवाज़ सुनाई नहीं देती इन दिनों

ऐसे में सही समय ज्ञात करना
आसान नहीं है
घड़ियाँ अगर सही भी चल रही हों
तब भी ये कहना मुश्किल है
वे समय सही बता रही है

दरअसल समय, समय होता है
आगे या पीछे हम होते है या घड़ियाँ
अच्छा या बुरा जो होता है
उसे तो होना ही है
समय अच्छा या बुरा नहीं होता
अच्छा या बुरा होता है जीवन
एक ही समय में
अनेक जीवन जी रहे होते है लोग

समय के साथ चलता है जीवन
चलते चलते ठहर जाता है जीवन
समय न ठहरता है
न मुड़ कार देखता है
मुड़ कर देखता है जीवन
समय आगे निकल जाता है