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सहेज कर रखो हमें / मनीषा जैन
Kavita Kosh से
क्या तुम्हें पता है?
औरतें होती हैं
रेत के नीचे की ठंडक सी
फूलों की खुशबू सी
कल-कल बहता हुआ झरना
ऐसे सहेज कर रखो हमें
जैसे रखते हैं
फूल किताबों में
देखो हमें ऐसे
जैसे आंखों में भर कर प्राण
ऐसे छुओ हमें
जैसे छुईमुई के पेड़ को
बहुत नाजुक है हम
बहुत संभाल कर रखो हमें।