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साँचा / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
बातों का क्या
बातों को खेंच-खेंच
ले जाओ, जहाँ
आकाश,
जहाँ तक साँस बात को
बातों के साँचे में ढाले-
कविता हो जाए,
मन तो पर वहीं,
वहीं-
घानी में पेर-पेर निज अपना,
देखा करता पूरे दिन,
बूँद गिरे यदि
कहीं एक तो,
दिन
खाली न जाए।