भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँझ की सीख / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
साँझ हुई अब घर से निकलो
बन्द करो जी यह कम्प्यूटर
रुकी है बारिश बड़ी देर से
बोल रहे हैं मेंढक टर-टर
गली में ठेला ले आया है
भुट्टे वाला भैया
नाबदान-नाली में बच्चे
चला रहे काग़ज़ की नैया
गमक पकौड़ी की नथुनों तक
चली आ रही बिना बुलाए
बाहर निकलो खोज-ख़बर लो
किसने क्या पकवान बनाए
इन्द्रधनुष शायद उग आए
बरस चुका है अच्छा पानी
खेतों का रंग बदल चुका है
धान हुआ है और भी धानी
बाहर कितना दृश्य सुहावन
घर से निकलो बाबू साहब
हवा बतास लगने दो तन को
अब तो बदलो अपना छब-ढब