साँझ स्वरावरोध / राजकमल चौधरी
समयक पाथर-खण्डक तर रुकि गेल, मित्र
दबि गेल प्राणकेर शिशु तरुवर
वंशीमे अछि आब ने स्वर
चम्पासँ रंगल साँझ, अछि कारी-सियाह
दम्पति-नकुल मन्हुआयल, भेल विलग
नइँ ल’ जायत विरही यक्षक समाद प्रिया धरि
ई जलशून्य मेघ, ई दुःखित खग
रवि-किरण क्षिजित-आलिंगनमे सूतल
कमलिनी अन्हारमे कनइत,
अति दूर देश, गाम, आङन, तुलसी-चौरा लग बैसलि
हमर राधिका हेती गबइत-
यअता नइँ की प्राण हमर
समयक पाथर-खण्डक तर रुकि गेल, सखि
दबि गेल सिनेहकेर शिशु-तरुवर
वंशीमे अछि आब ने स्वर
बुझबो नई कयलहुँ कहिया बीतल वसन्त
झरलइ कहिया गुलाबकेर मधु मुस्कान,
अभावमे ग्रस्त, अर्थक चिन्तामे व्यस्त रहइत छी
धधकइत रहइत अछि सदिखन विद्रोही प्राण
बिसरि गेल बियाहकेर गीत, करुण समदाउनि
बिसरल प्रियाकेर चाकर सिन्दूरक रेखा
गाम, गामकेर स्मृति घरि हेरा गेल
की-की हेरायल नइँ अछि लेखा
सुखा गेल हृदयकेर स्मृतिकेर मधु-निर्झर
समयक पाथर-खण्डक तर रुकि गेल, सजनि,
दबि गेल हृदयकेर शिशु तरुवर
वंशीमे अछि आब ने स्वर
-पल्लव: वर्ष 1 अंक 5, सितम्बर, 57