साँझहिं ते करि राखै सबै करिबे के काज हुते रजनी के ।
पौढ़ि रही उमगी अति ही मतिराम अनन्द अमात न जी के।।
सोवति जानि के लोग सबै अधिकाते बिलास-मनोरथ-नीके ।
सेज ते बाल उठी हरुए हरुए पट खोलि दिए खिरकी के।।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।