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साँझ हुई / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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साँझ हुई
और धूप उतर गई घाट से

रेती पर बिखर गया है गुलाल
शेष रहा है केवल एक ही सवाल

रात-हुए
राख झरेगी क्या फिर लाट से

तट पर का बरगद भी मौन हुआ
प्रश्न हुई घर की पुरखिनी दुआ

उठीं
हठी आवाजें हैं बड़के हाट से

तब से ही है ऐसा दृश्य रहा
जबसे है मन्दिर का कलश ढहा

उठे नहीं
बुढ़ऊ कल पौरी की खाट से