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साँझ / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

साँझक पहर उदास!
सूनोॅ रस्ता दूर नगरिया!
थुलथुल बुढ़िया हतोपरास!
खट-खट छेंड़ी; झपझप आँख,
गुदरी पुतली पट्टी-टाँक
कुबड़ोॅ डाँड़ोॅ उमरक भार
सौंसे जिनगी दूर-दमार
हिरदय के नदिया हहराय,
छन-छन आबेॅ छन-छन जाय
बितलोॅ जिनगिक हवा-बतास!
साँझक पहर उदास!

बालू-घुरदा दोना-मौनी
दीया-बाती मान-मनौनी
लाज-लजारी सेज-सजारी
सब होशियारी सपनाक रास!
डगमग डेग छेंड़िक थेग
सुखी रहै के, खूब बहै के
सौंसे जिनगी एक पियास!
साँझक पहर उदास!