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साँझ / हो ची मिन्ह
Kavita Kosh से
खिलता है गुलाब
मुरझाता है
खिलता है गुलाब
सूख जाता है निष्प्राण
लेकिन
ख़ुशबू उसकी भर जाती है
कारागार में
और गुस्सा जगाती है क़ैदियों का