भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँड़ / नील कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे
सचमुच नहीं
मालूम कि यह
है शान्त हरा रंग, और
वह लाल रंग भड़कीला

उसे दोनों का फ़र्क तक
नहीं पता, यक़ीन जानिए

वह निर्दोष बछड़ा है
किसी निर्दोष गाय का
जिसके हिस्से का दूध
पिया दूसरों ने हमेशा

वह बचता-बचाता
आ गया है सभ्यता के
स्वार्थलोलुप चारागाह से
जहाँ बधिया कर दिए गए तमाम
बछड़े, खेतों में जोते जाने के लिए,
उन्हें पालतू मवेशी में बदल दिया गया

साँड़ को बख़्श दीजिए
अफ़वाहें न फैलाइए कि
भड़क जाता है वह लाल रंग देखकर

यह कैसा भाषा-संस्कार है आप का
कि जिसमें बैल कहलाए, जो पालतू हुए, और
जिन्हें पालतू नहीं बना सके आप, वे साँड़ कहलाए ।