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साँध्य-गीत / महेश उपाध्याय
Kavita Kosh से
टूट गई
धूप की नसैनी
तुलसी के तले
दिया धर कर
एक थकन सो
गई पसर कर
दीपक की ज्योति
लगी छैनी
आँगन में
धूप-गन्ध बोकर
बिखरी
चौपाइयाँ सँजोकर
मुँडरी से उड़ी
कनक-डैनी