कितनी दफ़ा तो
बड़ा रूका मैं उस की जानिब
सदियों वो महका कर मेरा ज़ाहिर ओ बातिन
कई युगों तक उस ने मुझ को याद किया
और कहा ये नद्दी हूँ मैं
नाव हो डोलो मुझ पर
झूठ उठो तन की चाँदी सोना पाकर
लेकिन मेरे जिस्म के वीराने से कोई
हर दम मुझ को ताक रहा है
तन से आगे
मन नगरी में झाँक रहा है
नींद नशे के
ज्ञान ध्यान में सान रहा है
सर से क़दम तक तान रहा है