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साँवरे को हम मुहब्बत में रिझाते रह गये / रंजना वर्मा
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साँवरे को हम मुहब्बत से रिझाते रह गये
मंदिरों में सिर शिलाओं को नवाते रह गये
प्रेम के रस से भरी नित प्रीति की गंगाजली
व्यर्थ सारा नीर नाली में बहाते रह गये
आह में था दीन दुखियों की बसा वो सांवरा
पाँव लेकिन पंडितो के हम दबाते रह गये
भक्त तुमको टेरते बस एक दया की दृष्टि को
किन्तु तुम वृन्दा विपिन वंशी बजाते रह गये
भर रहे हुंकार दुर्योधन दुशासन हर तरफ
लुट रहीं नित नारियाँ तुम मुस्कुराते रह गये
त्याग सेवा की कहीं भी भावना बाकी नहीं
हैं जिन्हें पद मिल गये रुपये कमाते रह गये
है नहीं इस ओर अब आता कभी कोई मगर
आगमन की आस में दीपक जलाते रह गये