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साँवरे घनश्याम को दिल से रिझाना चाहिये / रंजना वर्मा
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साँवरे घनश्याम को दिल से रिझाना चाहिए.
बस उसी प्रभु का भजन नित गुनगुनाना चाहिए॥
है वही मथुरा नगर वृंदा विपिन भी है वही
प्रेम सागर में उसी प्रतिदिन नहाना चाहिए॥
कुंज गलियों में अभी भी गूँजती है बाँसुरी
सुन सके वह दिव्य ध्वनि ऐसा बहाना चाहिए॥
धूल मिल जाये वही जो हरि चरण थी चूमती
मान चंदन भाल पर उस को लगाना चाहिए॥
नित्य ही करते रहे हरि के चरण की वंदना
दिव्य सिंहासन हृदय पर ही बिठाना चाहिए॥
नेत्र गलियों में भटकता फिर रहा है साँवरा
पुतलियों का पलंग उसके हित बिछाना चाहिए॥
कक्ष है मन का बहुत छोटा अगर तो क्या हुआ
प्रेम से प्रभु का वही आसन लगाना चाहिए॥