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साँसत में जिनगी / मुनेश्वर ‘शमन’
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साँसत में पड़ल जिनगी गाँव में भी सहर में भी।
छींटा लहू के ताजा पथ पर भी डगर में भी।।
बढ़ले ही हियाँ जा हइ नित हादसा के जमघट।
रोकय के दम लखा नत्र, मनवाँ में कमर में भी।
जद्दोजहद हे जारी जीअय के लेल जिनकर।
बिरानी बसल उनकर जियरा में नजर में भी।।
जाय भी तो कहाँ मैनमन-रहियन में बाज बैठल।
अनहोनी के आसंका बहरो त• घर में भी।।
जहाँ सान के हे लहरा उहाँ दाग भरल गहरा।
अज़बे-गज़ब हे मउसम तासीरो- असर में भी।।
दिल हे कि दिनों-दिन ई, पथराल कते जाहे।
ऊ बात कहाँ अब तो गंभीर खबर में भी।।
आवल सताब्दी के मुहनमे पर त• देख•।
अइलय हे फरक अदमी, अदमी के कदर में भी।।