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साँसों की रेल गाड़ी चाँद के गाँव / हेमा पाण्डेय
Kavita Kosh से
कुदरत गाती है
मोहब्बत के नगमे
नदियाँ खिल खिलाती हुई
अनन्त की और
आसमान पर रची
दिलकश पेंटिग
संग संग फूलो ने बाढ़ दी
हवा के आँचल में
खुशबु के रुमाल की गाँठ
खेलते है मौसम हर बरस
पकड़म पकड़ाई
दरख़्त कर देते है बदलाव
चुपके से आता है एक मौसम
राजा ऋतुओ का
गुनगुनाते है हम
तब लताये शर्माती है
झूमते है दरख्त
मुस्कुराती है बहारें
जिंदगी इस मौसम की तरह
खुशगवार रहे हरदम।
दुहरानें होंगे सकारात्मकता के मन्त्र
यदि हो पाया ऐसा
फर्राटे भरेगी साँसों की रेलगाडी
पहूँचेगी चाँद के खूबसूरत गॉव तलक।