साँसों के धागे / सुरेन्द्र स्निग्ध

एक-एक कर
साँसों के टूटते धागे को
मैंने जोड़ा है
बड़े जतन से
जिन साँसों ने
हमेशा भरी हैं
मेरे जीवन में ऊष्मा
जिन साँसों ने
घोले हैं मेरे जीवन में
विविध रंग
जिनसे खिले हैं
प्रेम के असँख्य फूल
जिनसे फैले हैं
मेरे जीवन में
ख़ुशबू के अन्तहीन वितान
इन्हीं साँसों को
आज देखा है एक-एक कर टूटते
क्षत-विक्षत होते
इनके धागे
तुम्हारी इन्हीं कमज़ोर

और टूटती साँसों से

मैंने जोड़ दी है
अपनी साँसों की डोर
बड़े जतन से
बड़े जतन से ।

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