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साँसो का विश्वास करो मत यह छलना है / अमरेन्द्र
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साँसो का विश्वास करो मत यह छलना है
जीवन तो मृत्यु का झूला है, पलना है।
कब जाने प्राणों के गीत रूके, रूक जाए
लौट चले आँखों में सपने आते आए
अधरों के ये फूल महकते गिर जाए ही
जिनको कि आखिर में गिरना ही, गलना है।
ऊपर से जितना भी जीवन सुरभित, चक-चक
उम्र यहाँ पर फल के बीच में बैठा तक्षक
जाने कब ले डस यौवन को, गिरे परीक्षित
फिर तो चन्दन की काया को ही जलना है।
कम क्या है, जो दो क्षण अपने पास धरोहर
समय-शिला पर आओ लिख दें ढाई आखर
कल तो फिर दोनों को अपने-अपने पथ पर
तन्हा-तन्हा गुमसुम-गुमसुम ही चलना है।