भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सांच / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अखबारां में
रोज नूंवी-नूंवी
खबरां छपी आवै है
कैवै है आ बात लोग-बाग
म्हनैं तो सौ बातां री
एक बात समझ आवै है
सबदां रो एक ई सांच
सांच लागै
जूनो हुयोड़ो सांच,
मानखै री मिरतु
मिनखपणै रो अजूणो अर
मिनखां री रैवणगत।