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सांझ पहरवा / शार्दूल कुशवंशी
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					तू नाहीं समझल~, प्यार के हमरा...
समईया गुजर गईल, मिलल~न हमरा। 
न जाने का का, देखले रही सपना
तनिके में तोहके, समझ लेलीं रहीं अपना
रे कठकरेजऊ...जियते मार देल~हमरा। 
सांझ पहरवा, यमुना कछार के किनरवा। 
रहिया निहारत रहलीं, भोर-भिनुसरवा। 
तबो न अईल~मोर~, दिल के धड़कनवा। 
तड़पेके छोड़ दिहल~, जलत~अंगनवा। 
रे निरदयऊ...जियते मार देल~हमरा। 
सूरज के लाली नियन, मोर होठवा के लाली रह~। 
आँख के पुतरिया के, बरत ज्योति रह~। 
कईसे भुलाईं तोहके, मोर जिनगी के मोती रह~। 
नदी के धार रह~, उल्लास के सोती रह~। 
रे निरमोहिया...जियते मार देहल~हमरा के।
	
	