भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सांपों को दूध पिलाने की / धनराज शम्भु
Kavita Kosh से
सांपों को दूध पिलाने की हमारी आदत हो गयी है
औरों के तले दब कर जीने की हमारी आदत हो गयी है
सुबह होठों से फूल झड़ते हैं शाम को छुरियाँ चलती हैं
हर प्रकार की वार सहने की हमारी आदत हो गयी है
नाक दबा कर हम हमेशा ही तेल पीते रहे हैं
सभी हजम कर जाते अब तो ज़हर की हमारी आदत हो गयी हैं
रोशनी भरे शहर में जीने से अब डर लगने लगा है
मातमी विरान में अब जीने की हमारी आदत हो गयी है
जी चाहता है कि सारी दुनिया के लिए फना हो जाएँ
अब तो जान हथेली पर रखने की हमारी अदत हो गयी है।