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सांवरे हम हो गये हैं / आकृति विज्ञा 'अर्पण'

साँवरे की एकटक हम, बाँसुरी में खो गए हैं।
कह रही हैं सब दिशाएँ, साँवरे हम हो गए हैं॥

रंग टप-टप चू रहे हैं
भंगिमाओं के गगन से।
एक तल में जब मिलेंगे
गर लगेंगे श्याम रँग से।
साँवरी रंगत चढ़ी है
रंग बाक़ी खो गए हैं...

कह रही हैं सब दिशाएँ, साँवरे हम हो गए हैं॥

चाँद ने भी ओढ़ लीना
साँवरे-सा स्याह कंबल।
गीत गाते श्याम वारिद
झूमते संदल के जंगल।
आसमाँ है गाढ़ श्यामल
सब सितारे सो गए हैं...

कह रही हैं सब दिशाएँ, साँवरे हम हो गए हैं॥

एक सरि नभ की धरा पर
अस्ति की धुन गा रही है।
दो किनारों को निमंत्रण
हेतु ख़त भिजवा रही है॥
एक विरहिन-एक योगी
आज चयनित हो गए हैं...

कह रही हैं सब दिशाएँ, साँवरे हम हो गए हैं॥