भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सांसां माथै भारो देखो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सांसां माथै भारो देखो
हाथ हाथ सूं न्यारो देखो
आज नईं तो काल पजैला
बै नाखै नित चारो देखो
पीड़ चाती हुई रूं-रूं में
छोड़ै कोनी लारो देखो
छीयां नै छोड जावै डील
एक नुंवो नजारो देखो
उडती चिड़ी रा पंख टूट्या
मनसूबा रो गारो देखो