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सांस लेवती रूत / सांवर दइया
Kavita Kosh से
तूं कनै हुवै जणा
मूंगाछम हुवै बिरछ
डाळां माथै बैठा पंछीड़ा ई
गावै- बतळावै
बागां में
फूल हुवै
फूलां में सोरम हुवै
तूं सागै हुवै जणा
फागण-चैत री गुलाबी ठण्ड हुवै
ठण्ड सूं उपजती
हळकी-हळकी आंच हुवै
सुण तो सरी-
जीवती-जागती
महकती-मुळकती
सांस लेवती रुत है तूं !