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साअतों की नहीं बात लम्हों की है / मेला राम 'वफ़ा'

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साअतों<ref>क्षण</ref> की नहीं बात लम्हों की है जिस्म से रूह पर्वाज़ कर जाएगी।
तुम हमारी ख़बर को तो क्या आओगे अब तुम्ही को हमारी ख़बर जाएगी।

जिस क़यामत से वाइज़<ref>शैख़</ref> डराता है तू उस क़यामत से कम ये क़यामत नहीं,
बार-हा दिल पे गुज़री है जो हिज्र<ref>जुदाई</ref> में बार-हा जान पर जो गुज़र जाएगी।

मेरे चारागरो<ref>चिकित्सक</ref> मेरे तन-परवरो, जाओ तुम किस लिए नींद खोटी करो,
हिज्र की रात ला-इंतिहा रात है ये क़यामत नहीं जो गुज़र जाएगी।

मेरे जीने न जीने में क्या फ़र्क़ है मेरा जीना न जीना बराबर है अब,
मुझ को मरने ही दो मुझ को मरने ही दो मेरे मरने से दुनिया न मर जाएगी।

मेरी दुनिया मिरी ज़िंदगी तक ही है और इक दिन मेरी मौत के साथ ही,
ख़ात्मा मेरी दुनिया का हो जाएगा मेरी दुनिया मिरे साथ मर जाएगी।

डरने वालों को दुनिया डराती रही डरने वालों को दुनिया डराती रहे,
तुम डरोगे न दुनिया से लेकिन अगर हार कर तुम से दुनिया ही डर जाएगी।

अल-अमाँ अल-अमाँ अल-हज़र<ref>ख़ुदा की पनाह</ref> अल-हज़र अल-अमाँ अल-हज़र तेरी नीची नज़र,
तीर बन कर जिगर में उतर जाएगी दर्द की टीस रग रग में भर जाएगी।

लाएँगी रंग लाएँगी आहें मिरी राएगाँ<ref>व्यर्थ</ref> ही न जाएँगी आहें मिरी,
मेरी क़िस्मत तो सँवरे न सँवरे मगर ज़ुल्फ़ तो उस परी की सँवर जाएगी।

ज़िंदगी को न है आरज़ू को 'वफ़ा' हसरत-आगीं है दोनों का शहर-ए-वफ़ा,
ज़िंदगी आरज़ू में गुज़र जाएगी आरज़ू दिल में घुट घुट के मर जाएगी।

शब्दार्थ
<references/>