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साइलि कों मचल रए दुलारी जे करत कलेऊ नइयाँ / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
साइलि कों मचल रए दुलारी जे करत कलेऊ नइयाँ।
मड़वा तरै भीड़ है भारी जुर मिल आये सरज औ सारी
सारे ससुर सभी समुझावें लड़का मानत नइयाँ।। साइकिल कौं।।
ठाड़ी समुझा रई हैं सास कैसे बेटा होत उदास, साइकिल नइयाँ मेरे पास।
घर बर आत्मा सौंपी सब तुम खों छिपौ कछु नइयाँ।। साइकिल कौं।।
सखियाँ करे मंगलाचार, लड़का बोलौ बचन उचार, मुदरी पहिरे नगीनादार
कह रई फूला कलेऊ कर लेऔ लाल फिर गये हैं भुइयाँ ।। साइकिल कौं।।
तुमसे लाला कहै न झूठी, नइयाँ कौड़ी पास में फूटी, लेलो सानेदार अँगूठी।
लड़का बिटियाँ बूढ़े हो जायें दैवे बूढ़ी बइयाँ ।। साइकिल कौं।।
करौ कलेऊ खुशी भई भारी, छुअई चरन सरज औ सारी, घर की होन लगी तैयारी
गोटीराम और रामकिसुन की रखियो लाज गुसइयाँ ।। साइकिल कौं।।