भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साईं, बैर न कीजिए / गिरिधर
Kavita Kosh से
साईं, बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार ।
बेटा, बनिता, पँवरिया, यज्ञ–करावनहार ॥
यज्ञ–करावनहार, राजमंत्री जो होई ।
विप्र, पड़ोसी, वैद्य, आपकी तपै रसोई ॥
कह गिरिधर कविराय, जुगन ते यह चलि आई,
इअन तेरह सों तरह दिये बनि आवे साईं ॥