भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साईं अपने चित्त की / गिरिधर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ।
तब लगि मन में राखिये, जब लगि कारज होइ॥

जब लगि कारज होइ, भूलि कबं नहिं कहिये।
दुरजन हंसै न कोय, आप सियरे ह्वै रहिये।

कह 'गिरिधर कविराय बात चतुरन के र्ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिये नहिं साईं॥