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साईकिल / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
अम्मा, साईकिल दिलवा दो
पापा नहीं दिलाते हैं।
छोटा है तू, गिर जायेगा,
यह कह कर बहकाते हैं॥
रोज चलाते सौरभ भैया,
चोट् कही लग पाती है।
अम्मा, मैं नादान नहीं हूँ,
मुझे साइ्रकिल आती है॥
पापा की बिल्कुल मत सुनना,
बस मम्मी से बात करो।
घर आये साईकिल मेरी,
तुम ऐसे हालात करो॥
दादाजी से पैसे ले लो,
या उनसे ही मंगवाना।
देखो अम्मां, ना मत कहना,
मुझे नहीं खाना खाना॥