भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साओनर साज ने भादवक दही / विद्यापति
Kavita Kosh से
साओनर साज ने भादवक दही।
आसिनक ओस ने कार्तिकक मही।।
अगहनक जीर ने पुषक धनी।
माधक मीसरी ने फागुनक चना।।
चैतक गुड़ ने बैसाखक तेल।
जेठक चलब ने अषाढ़क बेल।।
कहे धन्वन्तरि अहि सबसँ बचे।
त वैदराज काहे पुरिया रचे।।