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साक़ी / इक़बाल
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नशा पिला के गिराना तो सबको आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
जो बादाकश थे पुराने वे उठते जाते हैं
कहीं से आबे-बक़ाए-दवाम ले साक़ी।
कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरीं में तेरी,
सहर क़रीब है अल्लाह का नम ले साक़ी।