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साक्षी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
चानन नदी के वै पारॅ में
आभियो तांय खाड़ॅ छै ऊ पीपर के गाछ
गवाही छै हमरॅ तोरॅ मिलन के
बहै छै हवा तेॅ गाबै छै गीत
सुनाबै छै खिस्सा ई बिरहन रॅ
भुललौ नीं पिया तोंय बात बचपन रॅ?
चानन के सुखला बालू पर
बीत्ती-बीत्ती के खेला
तोरा याद कहाँ से होथौं
टिकोला तोड़ै लेॅ आमॅ के
साँझें-साँझ चलैबॅ ढेला
एक्के साथ मिली केॅ जाय छेलियै
दीवाली, दशहरा आरो जेठौरॅ के मेला
तोरा याद छौं या नै छौं
हमरा याद छै
कि माय के देला पैसा सें
हम्में किनलेॅ छेलियै एक डाँड़ केतारी
जेकरा छीनी केॅ खाब लागलेॅ छेलौं तोंय
आरो हमरा कानतेॅ देखी केॅ
तोहीं छेलौ ऊ
जें खिलैनें छेलौ हमरा
दाँतेॅ सें काटी-काटी केॅ
गोल-गोल गुल्ला बनाय केॅ
प्रीतम दाँतॅ के ऊ सम्बन्ध
दू दिलॅ रॅ ऊ अनुबन्ध
जें तोड़ेॅ हमरे किरिया।