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साक्षी / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
वक्त बीता, पर
आज भी
जख्मों की गंध ताजा है,
जो नरम-नरम घास पर चलते हुए
मेरे नाजुक/अनभ्यस्त पैरों ने
महसूसी थी!
बस, तब से ही
मेरे पैरों ने
गरम/तपती/जलती रेत पर
नंगे तलुए लिए
चलने की आदत डाल ली है;
आज तुम--
अपने प्यार की ठंडक से
मेरे झुलसते तलुवों को
सहलाने आए हो!
इस सुख को जीना चाहते हुए भी
मैं... तुम्हारे प्रस्ताव को
ठुकराने की अपराधी हूँ, क्योंकि
लहू में रची-बसी
जख्मों की परिचित गंध
आज भी
मीठे/खट्टे/कड़वे अतीत की
साक्षी है!