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साखी रहिहऽ साखी रहिहऽ, चान सुरुज हे / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
प्रस्तुत गीत में सिंदूरदान के समय सूरज, चाँद और पंच-परमेश्वर से साक्षी रहने का अनुरोध किया गया है।
साखी<ref>साक्षी</ref> रहिहऽ साखी रहिहऽ, चान सुरुज हे।
कवन बेटी हैछै<ref>हो रही है</ref>, सिनूरें अहिबाती<ref>सौभाग्यवती</ref> हे॥1॥
साखी रहिहऽ साखी रहिहऽ, पंच परमेसर हे।
कवन बेटी हैछै, सिनूरें अहिबाती हे॥2॥
शब्दार्थ
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