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साखी हायकू / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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त्रिशुल आपनोॅ समान
जे जीवोॅ केॅ देखै छै
वही पंडित ।

चावल तेॅ नै
अंकूरै छै तेॅ धान
संग छिलका ।

मौत खड़ा छै
सबके माथा पर
कोॅन ठिकान ।

धोॅन के पीछू
दुनिया भागत्हैं छै
तोंय नै भागोॅ ।

जें दुनिया के
कल्याण करै छोॅत
शिव छेकात ।

मांगल्हौ पर
प्यार आरो आदर
नैहें मिलत्हौं ।

शासनहीन
आतंकवाद ग्रस्त
बिहार राज्य ।

जन-जीवन
बिहार में संत्रास्त
जंगलराज ।