भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सागर-तट : सांध्य तारा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
					
										
					
					     मिटता-मिटता भी मिटा नहीं आलोक,
     झलक-सी छोड़ गया सागर पर।
     वाणी सूनी कह चुकी विदा : आँखों में
     दुलराता आलिंगन आया मौत उतर।
     एक दीर्घ निःश्वास :
     व्योम में सन्ध्या-तारा
     उठा सिहर।
हांगकांग शिखर, 19 जनवरी, 1958
	
	