सागर-नदियाँ / कुलदीप सिंह भाटी
1
दुनिया की सारी नदियाँ स्त्रियाँ हैं।
दुनिया के सारे पुरुष सागर हैं।
नदियों को किनारें छोड़ने नहीं दिया जाता।
सागर को किनारों में बांधा नहीं जा सकता
तो क्या
मर्यादाएं केवल स्त्रियों के लिए ही है?
2
नदियों का सागर से मिलना
यानी नदियों का
स्व-अस्तित्व खो देना।
क्या जरुरी है हर बार प्रेम में
खुद के अस्तित्व को मिटा देना?
3
नदियाँ और स्त्रियाँ एक-सी होती हैं
तभी तो दंभी आत्मार्पित
सागर और पुरुष के समक्ष
कर देती है स्वयं को समर्पित।
4
नदियाँ निर्मल हैं, स्वच्छ हैं
लंबा रास्ता तय करके भी नहीं
छोड़ती हैं वो अपनी निर्मलता।
सागर विशाल होते हुए भी
नहीं छोड़ पाता है अपनी निष्ठुरता।
5
नदियों पर पुल बाँधना जितना
सहज है।
उतना ही दुष्कर है सागर पर
सेतु बांधना।
पुरुष के इस पुरुषार्थ
में भी निहितार्थ है
स्त्रियों के प्रति घोर षड्यंत्र।
6
मिलन के बाद विलीन होना
प्रेम की पराकाष्ठा है तो अब
सागर को भी मिलना चाहिए
आकर कभी नदियों में।
7
नदी सागर में मिले
या सागर नदी में मिले।
मिलते रहना
प्रेम की प्रथम आवश्यकता है।