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सागर-स्नान - 2 / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
आप आ गए नहाकर
आइए, आ जाइए, ज़रा नज़दीक
और भी नज़दीक
छू लूँ आपकी गीली देह
महसूस कर लूँ
सागर की विशाल लहरों की
अनगिन उमंगें
कोशिश करूँ
समझने को रहस्य
भेदने को मायावी संसार
माफ़ कीजिएगा
सागर के खारे पानी ने
आपको थोड़ा और भी नमकीन बना दिया है
बहुत ज़रूरी है भाई, नमक
हमारे, आपके, उनके सबके जीवन के लिए ।
सागर की लहरों की थाप को
झेला है आपने !
इसके संगीत को भर लिया है कण्ठ में ?
और,
आकाश में उठे हुए लाल गुब्बारे
के धागे को
किसने तोड़ दिया है भाई ? आपने ?
नहीं-नहीं
लड़कियाँ बोल रही है साथ की,
ध्यान से सुनिए --
धागा तो स्निग्ध जी ने ही तोड़ा है !
मज़ा आ गया
आ गया न मज़ा
सागर में नहाकर !