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सागर और गिरगिट / अज्ञेय
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सागर भी रंग बदलता है, गिरगिट भी रंग बदलता है।
सागर को पूजा मिलती है, गिरगिट कुत्सा पर पलता है।
सागर है बली : बिचारा गिरगिट भूमि चूमता चलता है।
या यह : गिरगिट का जीवनमय होना ही हम मनुजों को खलता है?
नैपोली-पोर्ट सईद (जहाज में), 1 फरवरी, 1956